राष्ट्रवाद की सबकी अपनी अपनी परिभाषा है, कुछ लोगो के लिए केवल दुसरो की सेवा राष्ट्रवाद है, कुछ के लिए सेना के जवानो का कार्य। कुछ सोचते है की, शिक्षा या राजनीती सर्वोत्तम तरीका है राष्ट्रवाद के लिए। पर वास्तव में सही राष्टवाद हे क्या ?
वैसे राष्ट्रवाद सिर्फ एक विचारधारा मात्र है, जो एक संस्कारो से लोगो को आपस में बांधती है। ये कर्म क्षेत्र से अलग है, पर समस्त कर्मो के आधार को आपस में समन्वय करवा कर दिशा देती है।
जैसे एक मानव शरीर में हर एक अंग महत्वपूर्ण होता है, आप ये नहीं कह सकते की कौनसा अंग महत्वपूर्ण हे कौनसा नहीं? क्या आंखे, हाथो से ज्यादा जरूरी है, या दिमाग, पेट से ज्यादा जरूरी है ? पर हमारी चेतना, हमारी समझ से आगे स्वतः ही इनका आपस में समन्वय करवा कर कर्म को करवा देती है।
बिलकुल ऐसे ही, अगर राष्ट्रवाद की चेतना समाज में ना हो तो, देश या समाज एकीकृत योजना से आगे नहीं बढ़ पायेगा, जिसकी हानि का प्रभाव उस समाज के हर हिस्से वाले मानवो को होगा और देश बीमार हो जायेगा, जो पिछले कई सालो से हो भी रहा है।
वर्तमान में राष्ट्रवाद की सोच को बढ़ावा देने का उदेश्य मात्र उस सोयी हुई उन्नत सांस्कृतिक चेतना को हर भारतीय में जगाना हे, जिससे की भारतवर्ष का समग्र उत्थान हो सके, और सब एक मंत्र और एकता के साथ, एक दिशा की तरफ बढ़ सके।
राष्ट्रवाद पारम्परिक संस्कृतियों को संरक्षित और बढ़ावा देने में, सांस्कृतिक पुनरुत्थान करने में सहयोग करता है।
यह राष्ट्रीय उपलब्धियों पर गर्व करने को प्रोत्साहित करता है, देशभक्ति का प्रेरणास्रोत बनता है और मातृभूमि के सम्मान के लिए लोगो को निकटता से जोड़ता है।
ये हमेशा से इतिहास रहा है, की जब जब जिस देश के लोगो में राष्ट्रीय भावना घटी है तब तब, वहां के लोगो में लालच और स्वार्थ की भावना बड़ी हे और वो दूसरे देश के या तो आर्थिक या उपनिवेशिक गुलाम बने हे।
खुद अमेरिका जैसा देश, ‘अमेरिका फर्स्ट’ की राष्टवादी सोच के साथ ही आगे बढ़ पाया है, अमेरिकन चाहे दूसरे देश वालो के साथ कुछ भी करे, पर उनके लिए उनका राष्ट्र, उनके लिए प्रथम ही होता है, वो खुद मानते है की, जिस देश की खुद की कोई वास्तविक पहचान नहीं होती, वो देश ही नहीं हो सकता।
एक अच्छी राष्टवादी भावना, खुद को सामाजिक रूप से समर्थ बनाने में सहयोग करती है। शायद यही कारण है की विश्व के सारे देश ‘नागरिकता प्रमाण पत्र’ को *’राष्ट्रीयता’ / Nationality* के नाम से बुलाते हे।
इसलिए कभी भी खुद को राष्ट्रवादी कहने में संकोच नहीं करे, जिससे देश विरोधी लोग खुद ही समझ जायेंगे की आप देश के भक्त है (देशभक्त), फिर वो अंग्रेजी में खुद के ‘Indian Nationality’ का सबूत देने लग जायेंगे।
बिल्कुल वैसे ही, जैसे ये (विरोधी) लोग खुद को *हिन्दुस्तानी* तो शौक़ बताते है, पर इसमें नीहित *हिन्दू* शब्द का अर्थ नहीं जानते, ओर इसे सनातन धर्म से मिला कर, धार्मिक रंग दे देते है।
आभार
जितेन